(इस वजह से ये शरारत है) |
सआद नसीहत करने वाले कु़रान की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) (1)मगर ये कुफ़्फ़ार (ख़्वाहमख़्वाह) तकब्बुर और अदावत में (पड़े अंधे हो रहें हैं) (2)हमने उन से पहले कितने ... |


आपका-अख्तर खान "अकेला" |
(इस वजह से ये शरारत है) |
सआद नसीहत करने वाले कु़रान की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) (1)मगर ये कुफ़्फ़ार (ख़्वाहमख़्वाह) तकब्बुर और अदावत में (पड़े अंधे हो रहें हैं) (2)हमने उन से पहले कितने ... |
जो बदकिरदारियाँ उन लोगों ने की थीं |
(ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरान) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाजि़ल की है, पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ त... |
क्या ख़ुदा अपने बन्दों (की मदद) के लिए काफ़ी नहीं है |
और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में बाहम झगड़ोगे (31)तो इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ (तूफा... |
तो खु़दा ने उन्हें (इसी) दुनिया की जि़न्दगी में रूसवाई की लज़्ज़त चखा दी |
जो आग में (पड़ा) हो मगर जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उनके ऊँचे-ऊँचे महल हैं (और) बाला ख़ानों पर बालाख़ाने बने हुए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं ये खु़द... |
उनके लिए (जन्नत की) ख़ुशख़बरी है |
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं इबादत को उसके लिए ख़ास करके खु़दा ही की बन्दगी करो (11)और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहल म... |
और आदमी (की हालत तो ये है कि |
(इस) किताब (क़ुरान) का नाजि़ल करना उस खु़दा की बारगाह से है जो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (1) (ऐ रसूल) हमने किताब (कु़रान) को बिल्कुल ठीक नाजि़ल किया है तो तुम इ... |
असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है |
और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाजि़ल हेाता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे ब... |
बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े रूजू करने वाले थे |
(ऐ रसूल उन पैग़म्बरों के साथ झगड़ने वाले) गिरोहों में से यहाँ तुम्हारे मुक़ाबले में भी एक लशकर है जो शिकस्त खाएगा (11)उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और फिरऔन में... |
अपने माबूदों की इबादत पर जमे रहो |
खु़दा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहमवाला है सआद नसीहत करने वाले कु़रान की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) (1)मगर ये कुफ़्फ़ार (ख़्वाहमख़्वाह) तक... |
और देखते रहो ये लोग तो खु़द अनक़रीब ही अपना अन्जाम देख लेगें (179) |
फिर जब दोनों ने ये ठान ली और बाप ने बेटे को (जि़बाह करने के लिए) माथे के बल लिटाया (103)और हमने (आमादा देखकर) आवाज़ दी ऐ इबराहीम (104)तुमने अपने ख़्वाब को सच कर दिखा... |